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रासायनिक उर्वरकों का दुष्प्रभाव
उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग पर्यावरण, फसलों और मानव स्वास्थ्य के लिए कई तरह के खतरे पैदा करता है। फसलों में रासायनिक उर्वरकों के अधिक प्रयोग से मिट्टी की गुणवत्ता में लगातार गिरावट हो रही क्यूंकि रासायनिक उर्वरकों में मौजूद अत्यधिक पोषक तत्व मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों के प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ देते हैं और मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा को कम करके उसे अम्लीय बनाते हैं।
इसके अतिरिक्त रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग करने से कई पोषक तत्व बारिश के पानी के साथ बहकर जलश्रोतो में पहुच जाते हैं जहाँ शैवालो की अधिक प्रस्फुटन (algal blooms) के कारण पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है जोकि जलीय जीवों की मौत का कारण बनता हैं
अत्यधिक खाद से पौधे कमजोर हो जाते हैं, और रोगों और कीटों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। इसके रासायनिक उर्वरकों का उत्पादन करने वाले कारखानों से बहुत अधिक मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होने से पर्यावरण को भी नुकशान पहुचता है ।हाल ही में ब्राजील में वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे बिना रासायनिक उर्वरकों का उपयोग किए हुए सोयाबीन में उपज को बढ़ाया जा सकता है ।
वैज्ञानिकों का यह कार्य European Journal of Agronomy नामक इंटरनेशनल पत्रिका में फ़रवरी 2024 में प्रकाशित हुआ है ।
रासायनिक उर्वरकों के क्या विकल्प है
रासायनिक उर्वरकों के अलावा पौधों की वृद्धि और मिट्टी की उर्वरकता बढ़ाने हेतु कई अन्य भी विकल्प हैं कंपोस्ट (सड़ी हुई खाद्य सामग्री और यार्ड का कचरा), खाद (जानवरों का अपशिष्ट), अस्थि भोजन (bone meal), और रक्त भोजन (blood meal)।
इन्ही विकल्पों मे से एक है सूक्ष्मजीवों का फसलों पर टीकाकरण, टीकाकरण से सूक्ष्मजीव पौधे की जड़ों में रहकर वातावरण से नाइट्रोजन स्थिरीकरण (nitrogen fixation) करते है जिससे पौधे को विकास के लिए नाइट्रोजन मिलती है । तथा मिट्टी की उर्वरकता भी बढ़ाते है जिससे की उसके बाद लगने वाली फसल में भी उर्वरकता का काम करते है ।
पौधों में कौन कौन से जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण (biological nitrogen fixation) होते है
स्वतंत्र रूप से रहने वाले नाइट्रोजन-स्थिरीकरण जीवाणु (Free-living nitrogen-fixing bacteria):
ये बैक्टीरिया मिट्टी में स्वतंत्र रूप से नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते है
- एज़ोटोबैक्टर (Azotobacter)
- क्लोस्ट्रीडियम (Clostridium)
सहजीवी नाइट्रोजन-स्थिरीकरण जीवाणु (Symbiotic nitrogen-fixing bacteria):
ये विशेष जीवाणु फलीदार पौधों (जैसे मटर, सेम, दाल, आदि) की जड़ों में सहजीवी संबंध बनाते हैं। ये दलहनी फसलों जड़ों की ग्रंथियों में रहते हैं और पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करते हैं।
- राइज़ोबियम (Rhizobium)
सहयोगी नाइट्रोजन-स्थिरीकरण जीवाणु (Associative nitrogen-fixing bacteria):
ये बैक्टीरिया अनाज वाली फसलों जैसे गेहूं, चावल के पौधों की जड़ों के साथ रहकर पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करते हैं।
- एज़ोस्पिरिलम (Azospirillum
साइनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria): ये नीले-हरे शैवाल होते हैं जो जलीय वातावरण और नम मिट्टी में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर सकते हैं। उदाहरण:
- एनाबीना (Anabaena)
- नॉस्टॉक (Nostoc)
सोयाबीन: प्रकृति का नाइट्रोजन कारखाना
सोयाबीन फसल जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Biological Nitrogen Fixation) (BNF) का काम ब्रेडीराइज़ोबियम बैक्टीरिया के साथ मिलकर करता है । ये जीवाणु सोयाबीन की जड़ों पर बनी छोटी-छोटी गांठ रूपी ग्रंथियों में रहते हैं और वायुमंडलीय नाइट्रोजन को अमोनिया’ में बदल देते हैं जिसे सोयाबीन आसानी से ग्रहण कर लेती है।
एक अनुमान के अनुसार BNF सोयाबीन की नाइट्रोजन जरूरतों का 60-80% तक पूरा कर सकता है। जिससे की किसान नाइट्रोजन उर्वरकों पर 500-1000 रुपये प्रति एकड़ आसानी से बचा सकते हैं। इसके अलावा BNF कार्बनिक पदार्थों की मात्रा को भी भूमि में 10-20% तक बढ़ा देता है।
सोयाबीन पर ब्राजील में हुई अनुसंधान की कहानी
ब्राजील में, ‘नेशनल सेंटर फॉर सोयाबीन रिसर्च’ के आंद्रे मेटियस प्रांडो के नेतृत्व में, एक पांच साल तक सोयाबीन पर हुए अध्ययन से पता चला है की सोयाबीन में ब्रेडीराइज़ोबियम (Bradyrhizobium spp. ) बैक्टीरिया के साथ Azospirillum brasilense नामक जीवाणु से बीज उपचार करने से फसल की उपज मे अप्रत्यशीत बढ़ोतरी देखी गई । इस अनुसंधान में पूरे ब्राजील देश के 3,000 से अधिक किसानों ने भी भाग लिया।
अनुसंधान से यह पता चला की Azospirillum brasilense जीवाणु Bradyrhizobium जीवाणु के साथ मिलकर सोयाबीन फसल में जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण (BNF) प्रक्रिया को मजबूत करता है, जिससे सोयाबीन को वायुमंडलीय नाइट्रोजन का अधिक उपयोग करने में मदद मिलती है।
इन दोनों जीवाणुओ का एक साथ बीज उपचार करने से सोयाबीन की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाली ग्रंथियों की संख्या 35% तक बढ़ जाती है जिससे की पौधे की नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्षमता बढ़ती है जिससे फसल की बढ़वार ही ज्यादा होती है और फसल की पैदावार भी 8% तक बढ़ाने में मददगार होता है ।
Source: Research article
सोयाबीन में इन दोनों जीवाणुओ का सह-टीकाकरण (co-inoculation) से कुल आर्थिक लाभ में भी 111.5 अमेरिकी डॉलर प्रति हेक्टेयर का इजाफा हुआ जो यह दर्शाता है कि यह तकनीक किसानों के लिए बेहद किफायती और लाभदायक है।
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इस अनुसंधान का पर्यावरण पर फ़ायदे
इस सह-टीकाकरण तकनीक का लक्ष्य केवल उपज में वृद्धि नहीं है, बल्कि इसके महत्वपूर्ण पर्यावरणीय लाभ भी हैं:
- ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करता है: अनुमान है कि इस तकनीक को अपनाने से प्रति हेक्टेयर लगभग 350 किलोग्राम CO2 (कार्बन डाइऑक्साइड) की भी कमी आएगी ।
- मिट्टी के नाइट्रोजन स्तर को बढ़ाता है: यह तकनीक मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाती है और दीर्घकालिक तौर पर रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता को भी कम करेगी ।
किसानों से आह्वान: बने बदलाव का हिस्सा
यदि आप भी एक सोयाबीन किसान हैं, तो सह-टीकाकरण (co-inoculation) तकनीक को आजमाने पर विचार करें। यह जैविक विधि आपके लाभ को बढ़ाने और कृषि एवं पर्यावरण के बेहतर भविष्य में योगदान करने की महत्वपूर्ण तकनीक हो सकती है। अधिक जानकारी के लिए आपके क्षेत्र का निकटतम कृषि विज्ञान केंद्र या सरकारी कृषि कार्यालय में संपर्क करें
TEAM टीम का यह लेख पूरी तरह नीचे दिए गए रिसर्च पेपर पर आधारित है हम किसी भी प्रकार का क्लैम इस लेख में नहीं करते है ।
For more information please read complete research article: Prando, A.M., Barbosa, J.Z., de Oliveira, A.B., Nogueira, M.A., Possamai, E.J. and Hungria, M., 2024. Benefits of soybean co-inoculation with Bradyrhizobium spp. and Azospirillum brasilense: Large-scale validation with farmers in Brazil. European Journal of Agronomy, 155, p.127112.
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