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परिचय
जैविक खेती में कीट-पतंग किसी भी किसान के लिए एक दुःस्वप्न की तरह हो सकते हैं। कीड़े मकोड़ों को जैसे ही ताजी फसल दिखाई देती हैं, वे स्वादिष्ट भोजन की तलाश में फसलों पर टूट पड़ते है और देखते ही देखते किसान की मेहनत खराब हो जाती है । सिंथेटिक कीटनाशकों का उपयोग व्यापक रूप से बगीचों और कृषि फसलों पर इन कीटों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। लेकिन इनके कई नुकसान भी हैं जैसे ।
- पर्यावरण को नुकसान: रासायनिक कीटनाशक मिट्टी और पानी की आपूर्ति में रिसाव करके, पौधों, वन्यजीवों और हानिरहित कीड़ों को जहर देकर प्राकृतिक पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं।
- प्रतिरोध: कुछ कीट रसायनों के प्रति प्रतिरोधी होते जा रहे हैं, जिसके कारण किसानों को अधिक बार कीटनाशकों का उपयोग करना पड़ता है।
क्या कीटनाशकों के प्रयोग के बिना जैविक खेती की जा सकती है ?
सायनिक कीटनाशकों के अलावा, कई प्राकृतिक तरीके हैं जिनसे आप अपने बगीचे को कीटों से बचा सकते हैं:
- जैविक कीटनाशक: नीम का तेल, लहसुन का अर्क और अन्य प्राकृतिक पदार्थों से बने जैविक कीटनाशक रासायनिक कीटनाशकों के लिए सुरक्षित और प्रभावी विकल्प हैं।
- साथी रोपण: कुछ पौधे ऐसे होते हैं जो कीटों को दूर रखने में मदद करते हैं। इन पौधों को अपने बगीचे में लगाने से आप कीटों को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं।
- कीटों को फँसाना: चिपचिपे जाल और फेरोमोन जाल कीटों को फँसाने और उन्हें आपके पौधों से दूर रखने का एक प्रभावी तरीका है।
- कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं को आकर्षित करना: लेडीबग्स, lacewings और अन्य लाभकारी कीटों को अपने बगीचे में आकर्षित करने से आप कीटों की आबादी को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं।
जैविक और संरक्षित खेती हेतु नई तकनीकी
कृषि जाल जैविक खेती में फसलों को कीटों से बचाने और कीटनाशकों के उपयोग को कम करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। जब आप किसी बगीचे या सब्जी के खेत से गुजरते हैं तो आप आमतौर पर सफेद, काले या नीले जाल वाले ग्रीनहाउस देख सकते हैं। ये जाल मच्छरदानी की तरह काम करते हैं और शारीरिक रूप से कीड़ों को फसलों तक पहुंचने से रोकते हैं।
जाल का आकार निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है। छेद जितना छोटा होगा, कीट को प्रवेश करने के लिए उतना ही छोटा होना पड़ेगा। लेकिन जाल का रंग भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
जैविक खेती के लिए जापान के वैज्ञानिकों की नई खोज
क्योटो प्रीफेक्चुरल एग्रीकल्चर, फॉरेस्ट्री एंड फिशरीज सेंटर और टोक्यो विश्वविद्यालय की एक शोध टीम ने पाया है कि लाल जाल अन्य रंगों की तुलना में कीड़ों को रोकने में अधिक प्रभावी होते हैं। उन्होंने प्याज की फसल को थ्रिप्स से बचाने के लिए लाल, सफेद, काले और मिश्रित रंग के जाल के प्रभाव का अध्ययन किया। उन्होंने पाया की लाल जाल अन्य रंगों की तुलना में कीड़ों को रोकने में काफी बेहतर थे। यह अनुसंधान जैविक खेती के लिए बहुत ही उपयोगी साबित हो सकता है ।
इसके अलावा, खेत परीक्षणों में, प्याज की फसलें जो आंशिक रूप से या पूरी तरह से लाल जाल से ढकी हुई थीं, उन्हें पूरी तरह से खुले खेत की तुलना में 25-50% कम कीटनाशक की आवश्यकता होती थी।
इस तकनीक का उपयोग करके कृषि जालों (Net House) को काले या सफेद से लाल में बदलने से कीटनाशकों के उपयोग और इससे पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है,और जैविक खेती के लिए उपयोगी साबित हो सकता है ।
जैविक खेती से सम्बंधित, जापानी वैज्ञानिकों का यह अनुसंधान कार्य प्रख्यात नेचर प्रकाशन की जर्नल “Scierntific Reports” में हाल ही में प्रकाशित हुआ है ।
जैविक खेती में लाल जाल के फायदे
टोक्यो विश्वविद्यालय में ग्रेजुएट स्कूल ऑफ एग्रीकल्चरल एंड लाइफ साइंसेज के प्रोफेसर मसामी शिमोडा के अनुसार, अधिकांश कीड़ों की आंखों में लाल फोटोरिसेप्टर नहीं होते हैं और उनके लिए लाल रंग देखना मुश्किल होता है इसलिए उन्होंने लाल नेट की फसल को कीटों से बचाने मे जायद कारगर होते है
अनुसंधान की प्रमुख बातें
- लाल नेट की जाली का आकार कीट के शरीर से बड़ा था, लेकिन फिर भी छोटे जाली वाले काले या सफेद जालों की तुलना में लाल जल अधिक प्रभावी था।
- शोधकर्ताओं ने तीन जाल आकारों (2 मिलीमीटर, 1 मिमी और 0.8 मिमी) पर लाल जाल (लाल-सफेद, लाल-काला और लाल-लाल) के तीन रंग संयोजनों का परीक्षण किया। उन्होंने प्रयोगशाला और क्षेत्र में समान आकार के विशिष्ट काले, सफेद और काले-सफेद संयोजन जालों का भी परीक्षण किया।
- शोधकर्ताओं की टीम ने एक कीट, प्याज थ्रिप्स (थ्रिप्स तबासी) पर अध्ययन किया । जो की कीटनाशकों के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी है और दुनिया भर में कई महत्वपूर्ण फसलों को खाकर और हानिकारक वायरस फैलाकर उन्हें व्यापक नुकसान पहुंचाता है।
- शोधकर्ताओं ने तीन जाल आकारों (2 मिलीमीटर, 1 मिमी और 0.8 मिमी) पर लाल जाल (लाल-सफेद, लाल-काला और लाल-लाल) के तीन रंग संयोजनों का परीक्षण किया।
- अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया की सभी जाल जिनमें लाल रेशे शामिल थे, काले या सफेद जाल की तुलना में प्याज के थ्रिप्स को दूर रखने में काफी प्रभावी साबित हुए ।
- खेत मे परीक्षण के दौरान, शोधकर्ताओं ने कवर के विभिन्न तरीके से प्याज की फसल को लाल जल से कवर किया गया
- प्याज की फसल पर कोई कवर नहीं किया
- प्याज की फसल पर पूर्ण रूप से लाल जाल से कवर किया
- प्याज की फसल पर केवल शीर्ष पर लाल जाल से कवर किया
- प्याज की फसल पर केवल साइड से लाल जाल से कवर किया तथा ऊपर से खुला रखा
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वैज्ञानिकों ने पाया की जिन क्यारियों को केवल शीर्ष और साइड से कवर किया था उनमें प्याज की फसल को थ्रिप्स से बचाने हेतु पूरी तरह से कवर किए गए क्यारियों की तुलना में 25-50% अधिक कीटनाशकों की जरूरत पड़ती है ।
- ये नए लाल जाल कीटनाशकों की तुलना में अधिक महंगे हैं, लेकिन ये किफायती हैं क्योंकि इनका उपयोग वर्षों तक किया जा सकता है। वे कीटनाशकों के छिड़काव में शामिल सभी कार्यों के बिना कीटों को नियंत्रित करने में भी बहुत प्रभावी हैं
- अध्ययन से पता चला है की thrips का नियंत्रण लाल रंग पर निर्भर करता है ना की जाल के आकार पर (लाल रंग के जाल की जाली या आकार बड़ा भी उतना ही प्रभावी है जितना छोटा आकार) । लाल रंग के जाल की जाली का आकार बड़ा होने के फसल में फंगल संक्रमण की संभावना भी कम हो जाती है क्युकी उससे सूरज की रोशनी फसल तक आसानी से पहुचती है और बेहतर वायु प्रवाह के कारण, ग्रीनहाउस के भीतर तापमान उतना अधिक नहीं होता है, जिससे किसानों के लिए अंदर काम करना आसान हो जाता है।
अनुसंधान का भविष्य पर प्रभाव
जापानी वैज्ञानिकों ने बताया की इस शोध से भविष्य में ऐसे लाल जाल बना सकते है जो इंसान की आंखों द्वारा लाल न दिखें, लेकिन कीटों को नियंत्रित करने में मददगार होंगे जिससे की लाल जाल विनिर्माण लागत कम होगी, और हम स्थायित्व बढ़ाने के तरीके ढूंढ सकते हैं। यह अध्ययन दर्शाता है कि कृषि जालों को काले या सफेद से लाल में बदलने से कीटनाशकों के उपयोग और इससे पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है, जैविक खेती के लिए बहुत ही उपयोगी साबित हो सकता है ।
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Paper Title:
Susumu Tokumaru, Yoshiaki Tokushima, Shun Ito, Terumi Yamaguchi, Masami Shimoda. Advanced methods for insect nets: Red-colored nets contribute to sustainable agriculture. Scientific Reports. DOI: 10.1038/s41598-024-52108-1
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