कलौंजी की खेती: मेहनत कम फायदा ज्यादा Nigella farming in hindi

किसानों को खेती से आमदनी बढ़ाने के लिए प्रतिदिन नए नवाचार करने पड़ेंगे और तकनीकी के साथ आगे बढ़ना होगा । आय बढ़ाने के लिए खेती के प्रचलित तौर तरीको को छोड़ कर वैज्ञानिक तौर पर खेती करनी चाहिए ।  कलौंजी की खेती करके भी किसान अपनी आमदनी को बढ़ा सकता है क्यूंकि कलौंजी एक चमत्कारिक जड़ी-बूटी के रूप में उभर रही है और दुनिया भर में इसकी मांग बढती ही जा रही है कलौंजी को मानव जीवन शैली में अपनाने के बहुत सारे फायदे है ।  कलौंजी के फायदे और नुकसान जानने के लिए हमारा लेख पढ़े कलोंजी के फायदे

कलौंजी के बीजों का तेल दुनिया भर में विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए सदियों से उपयोग किया जा रहा है और यह यूनानी और आयुर्वेद जैसी भारतीय पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण औषधि है । निगेला या कलौंजी (निगेला सैटिवा ) एक वार्षिक पौधा है, जो रेननकुलेसी कुल से संबंधित है। इसकी खेती दुनिया के विभिन्न देशों जैसे दक्षिणी यूरोप, उत्तरी अफ्रीका और दक्षिण-पश्चिम एशिया में होती है। भारत में इसकी खेती राजस्थान, MP, UP, गुजरात और महारष्ट्र में होती है । कलौंजी की खेती कैसे करे इसके बारे में विस्तृत जानकारी इस लेख में दी जा रही है आप इस जानकारी के माध्यम से सफलतापूर्वक कलौंजी की खेती कर सकते है और ज्यादा लाभ कमा सकते है ।

कलौंजी की खेती के लिए मिट्टी

कलौंजी की खेती के लिए दोमट और हल्की काली मिट्टी उपयुक्त रहती है । मिट्टी में पर्याप्त कार्बनिक पदार्थ की मात्रा फसल की अच्छी उपज में सहायक होती है परंतु कलौंजी लगाने से पहले मिट्टी की जाँच अवश्य करवा ले तथा कलौंजी वाले खेत में उचित तरीके से जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए क्यूंकि कलौंजी की फसल जल भराव होने पर खराब हो जाती है । कलौंजी की फसल 6-8 पीएच वाली मिट्टी में आसानी से उग सकती है परन्तु उच्च अम्लता, लवणता या क्षारीयता वाली मिट्टी में फसल अच्छी नहीं होती है अत: किसान भाई मिट्टी की जाँच करवाने के बाद ही कलौंजी की खेती करे ।

कलौंजी की खेती के लिए जलवायु

कलौंजी को रबी के मौसम में बोया जाता है तथा इसके बीज अंकुरण के लिए तापमान बेहद महत्वपूर्ण है इसलिए बुवाई के समय तापमान 20-25 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए । कलौंजी के पौधे की प्रारंभिक विकास के लिए मौसम ठंडा होना चाहिए तथा पुष्पन और बन्नने तथा पकने के दौरान मौसम का साफ और गर्म होना आवशयक है । बीज बनाने के दौरान यदि बारिश या ज्यादा ठंडा मौसम होने पर फसल की उपज कम होने के आसार रहते है ।

बीज की बुवाई और बीज दर

कलौंजी के बीज की बुवाई छिडकाव या लाइन बुवाई द्वारा की जाती है। यह  प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में मध्य सितंबर से मध्य अक्टूबर तक रबी मौसम की फसल के रूप में बोई जाती है।  एक हेक्टर भूमि में बुवाई के लिए 5-7 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है और  बीजों को 1.5-2.0 सेमी गहराई से ज्यादा गहरा नहीं बोना चाहिए, जिसमें पंक्ति से पंक्ति की दुरी 30 सेमी और पौधे-से-पौधे की दूरी 15 सेमी होनी चाहिए।

कलौंजी किस्मे और बीज कहाँ से ख़रीदे

देश के विभिन अनुसंधान संसथान और कृषि विश्विद्यालय कलौंजी का बीज उत्पादन और बिक्री करते है बीज खरीदने की जानकारी नीचे किस्म के अनुसार दी गयी है

अजमेर कलौंजी -20 (ए.एन. 20) Ajmer Nigella-20

अजमेर कलौंजी -20 किस्म को NRCSS, अजमेर द्वारा विकसित किया गया है । यह किस्म राजस्थान में खेती के लिए उपयुक्त है और बुवाई के बाद 410-145 दिनों में परिपक्व हो जाती है। इस किस्म की औसत बीज उपज 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।  इसका बीज प्राप्त करने के लिए संसथान की वेबसाइट के द्वारा संपर्क कर सकते है NRCSS, अजमेर

अजमेर कलौंजी -1 (ए.एन. 1) Ajmer Nigella-1

इस किस्म को NRCSS, अजमेर, राजस्थान द्वारा विकसित किया गया है । इस किस्म को बीज परिपक्वता के लिए लगभग 135 दिनों की आवश्यकता होती है। सुनिश्चित सिंचाई के साथ अर्ध-शुष्क परिस्थितियों में खेती के लिए यह किस्म बहुत उपयुक्त है । औसत बीज उपज 8 क्विंटल / हेक्टेयर होती है। इसका बीज प्राप्त करने के लिए संसथान की वेबसाइट के द्वारा संपर्क कर सकते है NRCSS, अजमेर

पंत कृष्णा किस्म Pant

यह किस्म पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर, उत्तराखंड द्वारा विकसित की गयी है। इसका बीज प्राप्त करने के लिए संसथान की वेबसाइट के द्वारा संपर्क कर सकते है पंतनगर बीज

आजाद कलौंजी

इस किस्म को चंद्रशेखर आजाद कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, कल्याणपुर, कानपुर, उत्तर प्रदेश से विकसित किया गया था। इसका बीज प्राप्त करने के लिए संसथान की वेबसाइट के द्वारा संपर्क कर सकते है आजाद कलौंजी बीज

कलौंजी की खेती के लिए बीज उपचार

बुवाई से पहले बीज को 8-10 घंटे के लिए पानी में भिगोने से बीज अंकुरण बेहतर होता है। मिट्टी और बीज जनित रोगों की रोकथाम के लिए, बीज को बुवाई से पहले 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम के साथ बीज उपचार करना चाहिए। अब जैविक खेती के लिए माईको रहीज़ा या किसी अन्य जैव उर्वरकों के साथ बीज का उपचार करना चाहिये

कलौंजी की खेती के लिए खाद और उर्वरक

भूमि तैयार करने के समय 5-10 टन/हेक्टेयर की दर से एक अच्छी तरह से विघटित FYM को खेत में डालना चाहिए तथा इसके साथ ही कलौंजीं की खेती के लिए रासायनिक उर्वरकों के माध्यम से 40 किलोग्राम नाईट्रोजन, 20 किलोग्राम फॉस्फोरस और 20 किलोग्राम पोटेशियम/ हेक्टेयर की दर से डाला जाना चाहिए।

कलौंजी की खेती में सिंचाई

यदि बुवाई के दौरान नमी कम है, तो उचित बीज अंकुरण के लिए बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई दी जानी चाहिए। बाद में जलवायु और मिट्टी के प्रकार के आधार पर, 15-25 दिन के अंतराल पर सिंचाई की जानी चाहिए

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कलौंजी की खेती में कीट और उनका प्रबंधन

कई कीड़े विकास के विभिन्न चरणों में निगेला फसल के विभिन्न पौधों के हिस्सों को खिलाते हैं और नुकसान पहुंचाते हैं, जैसे कि जड़ और शूट फीडिंग कीड़े, बोरर्स, और पत्तियों और कैप्सूल बोरर पर चूसने वाले कीड़े।

1. कटवर्म

क्षति और लक्षणों की प्रकृति:

दिन के समय लार्वा पौधे के पास मिट्टी के अंदर रहता है और रात में मिट्टी की सतह से ऊपर आ जाता है। लार्वा पत्तियों और कोमल तनों और शाखाओं पर अतृप्त रूप से फ़ीड करते हैं और प्रारंभिक विकास चरण में फसल को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं। पत्तियों का फटना इसका प्रमुख लक्षण है

प्रबंधन:

इस कीट से रोकथाम के लिए तथा इसकी कीट की उपस्थिति का पता लगाने के लिए नियमित क्षेत्र निरीक्षण आवश्यक है। पौधे की जड़ के पास की मिट्टी में फोरेट 10 जी @ 10 किलोग्राम / हेक्टेयर या फेनवलरेट धूल @ 25 किलोग्राम / हेक्टेयर की दर से उपयोग करके इस कीट को नियंत्रण लाया जा सकता है।

2. कैप्सूल बोरर

क्षति और लक्षणों की प्रकृति:

कैप्सूल बोरर का संक्रमण शुरू में बीज कैप्सूल लगने वाली टहनी से शुरू होता है। बोरर्स युवा कैप्सूल पर हमला करते हैं और फल के अंदर छेद करते हैं। अंत में, कैप्सूल को क्षतिग्रस्त कर देते है जिससे की पौधा बीज बनाने में विफल रहता है।

प्रबंधन:

यदि प्रारंभिक अवस्था में संक्रमण का पता चलता है, तो बोरर की आबादी की जांच करने के लिए लार्वा को हाथ से उठाने और नष्ट करने करना चाहिए। इसे क्लोरोपाइरीफॉस 0.04% के छिडकाव से भी नियंत्रित किया जा सकता है। छिड़काव 10-12 दिनों के अंतराल पर दो या तीन बार किया जाना चाहिए।

कलौंजी के रोग और उनकी रोकथाम

1. जड़ सड़न

यह कलौंजीं फसल का एक प्रमुख रोग है। प्रभावित पौधे मुरझाए हुए जैसे हो जाते हैं और संक्रमण के 10-20 दिनों के भीतर मर जाते हैं।

प्रबंधन

ट्राइकोडर्मा विराइड  और स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस के साथ बीज उपचार (10 ग्राम / किग्रा बीज) और मिट्टी का उपयोग (50 किलोग्राम एफवाईएम या वर्मी कम्पोस्ट में 2.5 किलोग्राम / हेक्टेयर मिश्रित)  रोग  का प्रबंधन करने के लिए प्रभावी साबित होता है।

फसल कटाई और उपज

बुवाई के 135-150 दिन बाद फसल पक जाती है। जब बीज कैप्सूल में पूर्ण परिपक्वता प्राप्त कर ले और काले रंग में बदल जाये तब काटा जाना चाहिये ।एक हेक्टेयर भूमि से औसतन 5-10 क्विंटल बीज की उपज प्राप्त की जा सकती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

कलौंजी का देसी नाम क्या है?

कलौंजी का सामान्य भाषा में मगरेल के नाम से जाना जाता है । कुछ इलाकों में इसे काला बीज या काला जीरा भी कहा जाता है ।

कलौंजी के नुकसान

कलौंजी को ज़्यादा मात्रा में खाने से अपच या पेट सम्बन्धी समस्या हो सकती है

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